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लेखनी कहानी -01-Jun-2023 मंगल

व्यक्ति आजकल "मंगल" में बहुत ज्यादा इंट्रेस्टेड है । धरती की लीलाओं को तो जान नहीं पाया आज तक और चला है "मंगल" पर "मंगल" खोजने । कोई कहता है कि मंगल पर पानी है तो कोई कहता है कि "मंगल" पर "जीवन" हो सकता है । पता नहीं ये वैज्ञानिक भी कैसे खब्ती होते हैं । जिनके खुद की लाइफ में "जीवन" नहीं वे "मंगल" में "जीवन" तलाश रहे हैं । जिनकी खुद की आंखों में "पानी" नहीं वे मंगल पर "पानी" तलाश रहे हैं । 

"राम तेरी माया । दूर ही रखना मंगल का साया" । 
सुना है बड़ा खतरनाक होता है मंगल का साया । इसलिए लोग "मंगल" की "दशा" से सदैव बचना चाहते हैं । एक बार यदि मंगल की दशा पड़ गई तो शादी विवाह के लाले पड़ जाते हैं । जीवन में "मंगल" होने के लिए शादी बहुत जरूरी है । 

मैंने एक बार "मंगल" से ही पूछ लिया कि तुम लोगों के विवाह में अड़चन क्यों डालते रहते हो ? एक तो नाम तुम्हारा "मंगल" है और काम "अमांगलिक" करते हो । ये क्या भेद है, जरा इस भेद से रहस्य हटाओ ? 

मंगल वैसे ही गुस्से से लाल रहता है और उसका मुंह हमेशा ही सूजा सूजा रहता है । मेरी बात सुनकर वह और भी लाल हो गया और कहने लगा "तुम्हें अपना मंगल करना है कि नहीं ? यदि मैं तुम्हारी कुण्डली में बैठ गया तो तुम्हारी ऐसी तैसी कर दूंगा" । वह क्रोध से भन्ना रहा था । 

मुझे मंगल को चिढाने में बहुत आनंद आ रहा था । उसे और चिढ़ाते हुए बोला "एक तो तुम अपने बैठने की जगह बदलो । जब देखो तब किसी की कुण्डली में बैठे मिलते हो । और कोई जगह नहीं है बैठने की ? अरे , यदि बैठना ही है तो किसी के दिल में बैठो । किसी की यादों की छांव में बैठो । किसी की झील सी आंखों में बैठो । किसी के ख्वाबों में बैठो । किसी के आंचल तले बैठो । पर नहीं तुम्हें तो कुण्डली में ही बैठना है । क्या मिलता है तुम्हें उस छोटी सी कुण्डली में बैठकर" ? 

मेरे इस प्रश्न से वह सकपका गया और बोला "मेरी समस्याओं का कोई अंत नहीं है भैया । मेरे बारे में कोई सोचता ही नहीं है । उसी का परिणाम है कि मैं हमेशा लोगों का बुरा ही करता रहता हूं । मेरा आकार देखा है ? लगभग पृथ्वी के बराबर है । इतने बड़े आकार के आदमी को यदि कोई छोटी सी कुण्डली में बैठा दे तो वह क्या करेगा ? अमंगल ही करेगा ना ? मैं भी वही कर रहा हूं । मैं कोई अपनी मरजी से थोड़ी ना बैठा हूं कुण्डली में , मुझे तो साजिशन बैठाया गया है । कोई है जो मेरा बुरा चाहता है पर वह सामने नहीं आता । जिस तरह हुस्न वाले छुप छुप कर वार करते हैं वैसे ही कोई मेरा "शुभचिंतक" , आजकल के शुभचिंतक ऐसे ही होते हैं, मुझे यहां कुण्डली में बैठा गया है । मैं खुद परेशान हूं इससे पर क्या करूं, मजबूर हूं । ये किसकी शरारत है आप तलाश कर बताओ ना ? फिर मैं उसकी ऐसी तैसी कर दूंगा । 

अब तुम ही बताओ कि एक इतने बड़े शरीर को एक छोटी सी कुण्डली में बैठा दिया जाये तो वह लाल पीला नहीं होगा तो और क्या करेगा ? उस पर तुर्रा यह कि मेरी शादी भी नहीं करवाई है आज तक । अब तुम ही बताओ कि ये क्रोधित करने वाली बात है कि नहीं ? जब मेरी खुद की शादी नहीं हुई तो फिर मैं औरों की शादी कैसे होने दे सकता हूं ? अब समझ में आई मेरी समस्या" ? मंगल ने कुछ आशा भरी निगाहों से मेरी ओर देखा । 

मैंने कहा "हे मंगल जी, जिन लोगों ने शादी कर ली वे अपनी शादी से इतने तंग आ गये कि घर से भाग कर हरिद्वार में बाबा बन गये । अच्छा है कि आपकी शादी नहीं हुई वरना आप भी कहीं बाबा बनकर घूमते । पर एक बात बताओ कि बेचारी औरतें तुम्हारा नाम दिन रात जपती हैं और तुम्हें किसी सूत्र में पिरोकर अपने गले में डाल लेती हैं जिसे लोग "मंगल सूत्र" कहते हैं । पर तुम उनका भी मंगल नहीं कर पाते । वे बेचारी अपने पति के "अमांगलिक" कर्मों से पीड़ित रहती हैं । जिसकी लंबी उम्र के लिए वह मंगल सूत्र पहनती है वही पति उसके अमंगल का कारण बन जाता है । ये क्या माजरा है प्रभु" ? 

"भैया , शादी के बाद ऐसी ऐसी पहेलियां सामने आती हैं कि खुद भगवान भी चौंक जाते हैं । पत्नी गले में "मंगल सूत्र" डालकर अपने ही पति की हत्या कर देती है तो पति भी उसे जिंदगी भर प्रताड़ित करता रहता है । शादी जीवन में "मंगल" करने के लिए की जाती है पर वह "अमंगल" का कारण बन जाती है । तुलसीदास जी अपनी रामचरित मानस में लिख गये हैं 
मंगल भुवन अमंगलकारी ।
द्रवऊ सो दशरथ अजर बिहारी" ।। 

वह बोला "भैया , ये जो तुमने चौपाई बोली है, इसका मतलब क्या है ? मुझे हिन्दी आती नहीं है । कॉन्वेंट का पढा हूं तो जरा हिन्दी से दूर ही रखा था घरवालों ने मुझे" ।  वह उत्सुकता से बोला 

हमें बड़ा अच्छा लगा उसका इस तरह हमें मान देना । हमने अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए कहा "हे मंगल नामधारी अमंगलकारी देव, हमारे यहां एक कवि हुए थे तुलसीदास जी । वे पत्नी पीड़ित थे इसलिए "बाबा" बन गए । बाबा बनने के बाद आदमी भविष्य वक्ता बन जाता है तो वो भी भविष्य वक्ता बन गये । सोलहवीं शताब्दी में वे लिख गए कि इस देश में एक ऐसा अभिनेता होगा जो एक "लगान" नामक फिल्म में "भुवन" बनेगा और "मंगल पाण्डे" फिल्म में मंगल । इसलिए वह मंगल और भुवन दोनों होगा पर पर वह अभिनेता इस देश के लिए अमंगलकारी ही सिद्ध होगा क्योंकि उसका दिल और जान "पाकिस्तान" नाम के देश में गिरवी रखी हुई है । ऐसे में भारत का एक राज्य जो बिहार कहलाता है और वहां के लोग बिहारी कहलाते हैं , ये बिहारी लोग पाकिस्तान से प्रेरणा लेकर ऐसे ऐसे लोगों को अपना राजा बनाऐंगे जो अराजकता फैलायेंगे और खाने में "चारा" नामक पदार्थ खाऐंगे । उनमें से एक का नाम "सुशासन बाबू" होगा पर काम "कुशासन बाबू" की तरह ही होगा जैसे महाभारत में नाम सुयोधन था पर काम दुर्योधन जैसा था । तो ऐसे राजाओं (दशरथ) के कारण जनता त्राहि त्राहि करेगी और उन्हें द्रव यानी पानी भी नसीब नहीं होगा और वह ऐसे ही भूखी प्यासी मर जाएगी" । 
हमारी व्याख्या सुनकर मंगल बहुत खुश हुआ । बिल्कुल वैसे ही जैसे मोगाम्बो खुश होता है । मैंने आज पहली बार "मंगल" को हंसते हुए देखा । सच में हंसते हुए बड़ा मासूम लग रहा था मंगल । आप भी हंस रहे हो ना ? अरे हंसो भई । बहुत मासूम लगोगे । सच्ची मुच्ची । 
😄😄😄😄

श्री हरि 
1.6.23 


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2 Comments

Abhinav ji

01-Jun-2023 09:00 AM

Hehehe 😂 very nice 👍

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Hari Shanker Goyal "Hari"

01-Jun-2023 10:42 PM

🙏🙏🙏

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